क्यों लगता है अपने साथ सारी दुनिया से डर

डा. गौरव गुप्ता निदेशक व मनोचिकित्सक तुलसी हेल्थ केयर

स्कीजोफ्रेनिया एक प्रकार का मानसिक रोग है जिसमें रोगी की सोचने-विचारने की प्रक्रिया, भावनात्मक अभिव्यक्ति और व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक उत्तरदायित्वों के प्रति व्यवहार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. कुछ लोग भ्रमवश इसे ऊपरी हवा अर्थात् भूत-प्रेत का प्रकोप समझकर झाड़-फूंक के चक्कर में पड़कर बहुमूल्य समय का अपव्यय भी कर देते हैं. जिससे रोग दीर्घकालिक व असाध्य हो सकता है.

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किस उम्र में पहली बार

सामान्यतः स्कीजोफ्रेनिया 15-35 वर्ष की उम्र में कभी भी प्रथम बार उत्पन्न हो सकता है. हालांकि यह इसके पहले अथवा बाद में भी शुरू हो सकता है. पुरुषों में 15-25 वर्ष का वर्ग अधिक प्रभावित होता है. अतः आमतौर पर महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में इस रोग की शुरुआत कम उम्र पर ही हो जाती है. साथ ही पुरूषों में यह रोग स्त्रियों की अपेक्षा गम्भीर स्वरूप ले सकता है. यह रोग स्त्रियों व पुरूषों में समान रूप से पाया जाता है. जनसाधरण में प्रत्येक सौ लोगों में एक व्यक्ति इस रोग से ग्रस्त हो सकता है. यह हर आर्थिक वर्ग को समान रूप से प्रभावित करता है.

प्रारम्भिक लक्षण

रोगी के व्यवहार में आहिस्ता आहिस्ता निम्न परिवर्तन आने शुरू हो जाते हैं. जो कुछ हफ्तों से कुछ महीनों तक रहते हैं. अकर्मण्य व अन्तर्मुखी हो जाना, गुमसुम हो जाना, एकाकी जीवन व्यतीत करने लगना, बात-बात में उत्तेजित होना अनिद्रा व रोजमर्रा के कार्यों में रुचि का कम हो जाना.

रोग के बढ़ने पर क्या-क्या नये लक्षण आ सकते हैं?

  • मरीज को अनजानी आवाजें सुनाई देने का आभास होता है.
  • भ्रम वाली स्थिति जैसे कि अन्धविश्वास.
  • गड़बड़ी महसूस करना और सभी पर शक करना.
  • गलत-सलत विचार उठने की क्रिया से परेशान होना.
  • सामाजिक व भावनात्मक स्तरों पर भय सताने लगना.
  • निराशा व उत्साह की कमी का अनुभव होना.
  • ठीक से भावना प्रकट न कर पाना या फिर मुँहफट तरीके से व्यक्त करना.

विचित्रा प्रकार के अनुभव

कोई बाहरी शक्ति अथवा यंत्रा उसके दिमाग, विचारों, क्रियाओं अथवा व्यवहार को नियन्त्रिात कर रही हो. रेडियो, टी.वी., लाउडस्पीकर द्वारा उसके विचारों को प्रसारित किया जा रहा हो. अन्य व्यक्ति उसके राज व गुप्त विचारों को किसी प्रकार सुगमता से जान लेते हों. शरीर के अन्दर अथवा त्वचा पर विचित्रा अनुभूतियाँ. तरह-तरह की आकृतियाँ दिखाई पड़ना. अपने आप बुदबुदाना. बिना बात हँसना या रो पड़ना. अपने प्रियजनों के प्रति भावशून्य हो जाना. अपने मूल स्वरूप से हट कर कुछ नये व्यवहारों का प्रदर्शन करना. कुछ रोगी मूक व मूर्तिवत हो जाते हैं और घण्टों एक ही मुद्रा धरण किए रहते हैं.

कारण

इस रोग की उत्पत्ति के कारण अभी पूर्णतः ज्ञात नहीं हैं. कुछ ज्ञात कारण निम्नलिखित हैं-आनुवांशिकता की इसमें प्रमुख भूमिका है, व मस्तिष्क में रसायनों की गड़बड़ी. मस्तिष्क की संरचनात्मक विकृतियाँ. दुष्क्रियात्मक पारिवारिक परिस्थितियाँ. मानसिक तनाव. अक्सर यह रोग खानदानों में पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है. रोगी के सम्बन्ध्यिों में स्कीजोनिया होने की सम्भावना जनसाधरण से अधिक होती है.

स्कीजोफ्रेनिया की पुनरावृत्ति

यह एक दीर्घकालिक रोग है, जिसमें बार-बार पुनरावृत्ति होती रहती है. रोग उत्पन्न होने के प्रथम कुछ सप्ताह के दौरान रोगी के व्यवहार में विकृतियाँ जन्म लेना शुरू कर देती हैं. धीरे-धीरे रोग पूर्णतया विकसित हो जाता है व कुछ सप्ताह से कुछ माह तक बना रहता है. उसके बाद रोग दबने लगता है या रोगी कापफी कुछ हद तक ठीक हो जाता है.

इलाज

स्कीजोफ्रेनिया का इलाज निम्नलिखित चिकित्सा-पतियों द्वारा किया जाता है-औषधि चिकित्सा, व्यावहारिक चिकित्सा बोध-व्यावहारिक चिकित्सा, पारिवारिक चिकित्सा, प्रतिकात्मक अर्थनीति चिकित्सा, सामाजिक-प्रवीणता प्रशिक्षण, औषधि चिकित्सा इस रोग का मुख्य इलाज हैं. डा. गुप्ता के अनुसार औषधिया रोगी के विचार, भावनाओं व व्यवहार को सामान्य बनाती हैं. ये गोलियों के अलावा द्रव व इन्जेक्शन के रूप में भी उपलब्ध हैं जिन्हें माह में मात्रा एक अथवा दो बार ही देने की आवश्यकता पड़ती है. अतः असहयोग मरीज, जो दवा खाने से इन्कार कर देते हैं, उनका भी इलाज सुचारू रूप से चल पाना सम्भव है.

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